शिवराम की कविताएं
कोटा में शिवराम की तीन कविता पुस्तकों का विमोचन था। इस अवसर पर, उनकी कविताओं पर कुछ पोस्टर खींच-खांचकर मैं भी वहां उपस्थित था। कार्यक्रम की विस्तृत रपट की प्रस्तुति पर तो आदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी का कॉपीराईट है। अभी वे बाहर हैं, जल्द ही शायद उनके यहां प्रस्तुत होगी।
अपने पोस्टर तो यहां बाद में प्रस्तुत करने ही हैं।
अभी ताजातरीन प्रभाव में शिवराम की तीन कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूं।
व्यथा की थाह
किसी तरह
अवसर तलाशो
उसकी आँखों में झाँको
चुपचाप
गहरे और गहरे
वहाँ शायद
थाह मिले कुछ
उसकी व्यथा का
पूछने से
कुछ पता नहीं चलेगा।
०००००
जो चले, वे ही आगे बढ़े
जुए के तले ही सही
जो चले
वे ही आगे बढ़े
जिनकी गर्दन पर भार होता है
उनके ह्रदय में ही क्षोभ होता है
कैद होते हैं जिनके अरमान
वे ही देखते हैं मुक्ति के स्वप्न
जो स्वप्न देखते हैं
वे ही लड़ते हैं
जो लड़ते हैं
वे ही आगे बढ़ते हैं
जो खूँटों से बँधे रहे
बँधे के बँधे रह गये
जो अपनी जगह अड़े रहे
अड़े के अड़े रह गये।
०००००
महाभारत के कुछ सबक
धृतराष्ट्रों को
दुर्योधनों की
वैसी ही जरूरत होती है
जैसी कृष्णों को
अर्जुनों की
सत्ता की प्रतिबद्धता हो या निर्भरता
भीष्मों की भी वैसी ही
दुर्गति होती है
जैसी द्रोणाचार्यों की
अभिमन्यु
घेर कर ही मारे जाते हैं सदा
सदैव छले जाते हैं
कर्ण, एकलव्य और बर्बरीक
सत्ता पौरूष की हो या पूँजी की
कुन्तियाँ, गांधारी, राधाएँ और द्रोपदियाँ
समस्त पत्नियाँ, समस्त प्रेयसियाँ, समस्त स्त्रियाँ
होती हैं अभिशप्त
न्याय और सत्य
सिर्फ़ झंड़े पर लिखे होते हैं
लड़े जाते हैं सभी युद्ध
स्वार्थ और सत्ता के लिए
सभी पक्षों के होते हैं
अलग-अलग न्याय, अलग-अलग सत्य।
०००००
शिवराम
०००००
प्रस्तुति – रवि कुमार
हाँ बन्धु, कटु सत्य है यह – सबके न्याय और सत्य अलग अलग होते हैं।
सवाल यह है कि फिर इन्हें पिनैसिया की तरह क्यों बाँचा और सुनाया जाता है ?
रवि जी, आपके पोस्टर कहाँ हैं .. ..आपने रेडीमेड चित्र लगा कर ठग लिया हमें 🙂
…सुन्दर कवितायेँ .. शेष रिपोर्ट दिनेश जी के यहाँ पढेंगे ही.
जिन्दगी में जिन्दादिली लायें ऐसी हैं ये कवितायें शिवराम जी के जीवन पर कुछ प्रकाश डालें
शिवराम जी की को बधाई . बहुत-बहुत बधाई .
शिवराम जी की सक्रियता,रचनात्मकता और सद्भाव के प्रति मन में अपार आदर भाव है .
उनकी कविताओं पर मेरा भी हक है . सो कुछ कविताएं ’अनहद नाद’ पर भी दिखेंगी .
दिनेशराय जी की विस्तृत रपट की प्रतीक्षा रहेगी .
महाभारत की विडम्बनाओं का बड़े सा्र्थक तरीके से और प्रासंगिक तरीके से विवेचन किया है शिवराम जी ने..इतनी अच्छी कविताएं पढ़वाने के लिये आपका शुक्रिया..
आभार इन्हें प्रस्तुत करने का..जबरदस्त!!
बहुत-बहुत बधाई .
तीनों बेहतरीन कविताएँ हैं। संयोग से मैं इस लोकार्पण समारोह का साक्षी नहीं बन सका। लेकिन जहाँ रहा वहाँ भी काम का महत्व था। जल्द ही इस समारोह की रिपोर्ट आप तक पहुँचाने का यत्न करूंगा।
लड़े जाते हैं सभी युद्ध,स्वार्थ और सत्ता के लिए,सभी पक्षों के होते हैं,अलग-अलग न्याय, अलग-अलग सत्य।
लोगों की पृथ्वी भी अलग-अलग है-कबीले भी अलग-अलग है, तो सत्य-न्याय भी होने ही हैं
शिवराम जी को बधाई, आपका आभार
nice
kavitaye ke bare main kya kehna woh to best hi hai.
“jo chale woh hi aage bade”
phir aap kyon khuton se bandhe ho,kyon ayr kissse adhe ho.
सत्ता पौरुष की हो या पूँजी की,
कुन्तियाँ,गांधारी, राधाएं,और द्रोपदियां,
समस्त पत्नियां,समस्त प्रेयसियां,समस्त स्त्रियां
होती हैं अभिशप्त।
हर युग का सत्य यही है…तीनों कविताएं बहुत गंभीर अर्थ देती हैं…रचनाकार को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं…
डा.रमा द्विवेदी
‘महाभारत के कुछ सबक’ ये कविता बहुत पसंद आई… शुक्रिया…
‘सभी पक्षों के होते हैं
अलग-अलग न्याय, अलग-अलग सत्य।’
और हां! अलग-अलग कविता भी।
बधाई और सलाम।
तीनों कविताएं अच्छी लगीं। ‘व्यथा’ में कम शब्दों में बड़ी बात कही है शिवराम ने, लोग महसूस करें तो…
उसकी व्यथा का
पूछने से
कुछ पता नहीं चलेगा।
सच तो ये है कि पूछने वाला भी तो नही है कोई
भाई रवि जी पहले तो शिवराम जी को मेरा सादर नमन |
और आपको भी, आपके पोस्टर नहीं दिखे शिवराम जी कि कविताओं में |
खेर |
बहुत ही उम्दा कवितायेँ या यूं कह लीजिये की इतिहास और वर्तमान पर कठोर प्रहार करती ये कवितायेँ
कुछ सबक इतिहास से और कुछ वर्तमान से , हम सभी के लिए सबक के तौर पर है ये कवितायेँ |
बहुत दिन बाद शिवराम जी की कवितायेँ पढ़ी | धन्यबाद आपका और आपके प्रयासों का |
साथ ही जानना चाहूँगा की दिनेश राय दिवेदी जी ने ऐसा क्योँ कहा की ” संयोग से मैं इस लोकार्पण समारोह का साक्षी नहीं बन सका”
वो किस लोकार्पण समारोह का साक्षी नहीं होने के लिए कह रहे थे |
आपकी दृष्टि काबिले तारीफ़ है, आभारी हूँ आपकी टिप्पणी के लिए..
किसी तरह
अवसर तलाशो
उसकी आँखों में झाँको
चुपचाप
गहरे और गहरे
वहाँ शायद
थाह मिले कुछ
उसकी व्यथा का
पूछने से
कुछ पता नहीं चलेगा।
samvedana aur vicharon me guthi kavita sochane ko majaboor karati hai aur yahi kavita ki sarthakta bhi hai.
शिवराम जी की को बधाई . बहुत-बहुत बधाई .
तीनों बेहतरीन कविताएँ हैं। आपके पोस्टर नहीं दिखे?शिवराम जी ..इतनी अच्छी कविताएं पढ़वाने के लिये आपका शुक्रिया..‘महाभारत के कुछ सबक’ ये कविता बहुत पसंद आई… शुक्रिया…
बधाई
हां पोस्टर का इंतज़ार मुझे भी है
अब तो लगता है आपसे मार्क्स की कविता और कथन पोस्टर की डिमांड कर ही दूं…जब होगा विमोचन काम आयेंगी
🙂
इस बार बेहतरीन कविताएँ। सुन्दर। सत्य का सत्य।